Tuesday 13 August 2013

उपन्यास



तेरे लिए नहीं
राजिन्दर कौर


9

मंजू ने फोन पर बताया कि माला बहुत बीमार है। वह अस्पताल में भर्ती है। मैं स्वाति को फोन करती रही, पर वह मिली ही नहीं। एक दिन मैं इंदर को संग लेकर अस्पताल पहुँच गई। स्वाति भी वहीं मिल गई। माला का ब्लॅड प्रैशर बहुत बढ़ गया था और कंट्रोल में नहीं आ रहा था। बहुत सारे टेस्ट हो रहे थे। जिस दिन मैं अस्पताल गई, उस दिन माला की सेहत में कुछ सुधार हो गया था।
               बबली, सुजाता, बबली के डैडी... सब वहीं मिल गए।
               मेरे वहाँ होते ही स्वाति के बाबा और कृष्णा वहाँ आ गए। उस दिन मैंने उन दोनों को गौर से देखा। स्वाति के बाबा बहुत कमज़ोर, झुके हुए, बूढ़े और बीमार लग रहे थे। कृष्णा का शरीर भरा हुआ था, पर चेहरा ढलका हुआ था। बड़ी साधारण-सी, छोटे-से कद की औरत। आँखों पर मोटे शीशे की ऐनक, पर कॉटन की बार्डर वाली साड़ी बड़े सलीके से बाँधी हुई थी। गले में मंगलसूत्र, माथे पर बिंदी, बाहों में काँच की चूड़ियाँ।
               स्वाति कुछ देर बाद बाहर बरामदे में मेरे पास आकर बैठ गई। वह बहुत परेशान लग रही थी। बोली, “माला दीदी ने हम सब बहनों को अपने घोंसले में संभाला हुआ है। अगर दीदी को कुछ हो गया तो सब कुछ बिखर जाएगा।वह सिसक-सिसककर रोने लग पड़ी। उसके रोने ने मुझे अंदर तक हिला दिया।
               कुछ शांत हुई तो बोली, “दीदी ने द्वारका में एक अपार्टमेंट लिया है। बबली वहाँ चली जाएगी, अनिल को भी एक बैंक की नौकरी मिल गई है। सुजाता दीदी भी वहीं रहेगी। वह बच्चे को रखेगी। उधर विकासपुरी में अनिल के माता-पिता भी नज़दीक होंगे। उनका अनिल के सिवाय कोई नहीं है। माला दीदी और जीजा जी रिटायर होने के बाद द्वारका ही शिफ्ट कर जाएँगे। उन्हें क्वार्टर तो छोड़ना ही पड़ेगा। और बाकी रह जाऊँगी मैं...।यह कहकर वह हँसने लग पड़ी। एक उदासी भरी हँसी।
               अंजली का क्या हाल है ?“ मैंने पूछा।
               उन्हें ख़बर नहीं भेजी। वे खुद ही बहुत परेशान हैं।वह लम्बा साँस लेते हुए बोली।
               सुजाता खुश है ?“
               आजकल सुजाता दीदी बहुत संतुष्ट है। चिराग के साथ उनका दिल लगा रहता है। अब माला दीदी, जीजा जी, बबली, अनिल सब सुजाता दीदी की बहुत कद्र करते हैं। उन्हें हर प्रकार से खुश रखते हैं। बाहर घुमाने भी ले जाते हैं।
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भाभी जी, कल अस्पताल आ सकते हो ? बड़ा ज़रूरी काम है।स्वाति का फोन था।
               ज़रूरी काम है तो मैं ज़रूर हाज़िर हो जाऊँगी।
               गरमी बहुत है, आप सवेरे ही आ जाना, ठंडे समय। आपका खाना मैं ले आऊँगी।उसकी आवाज़ में उत्साह था।
               कुछ हिंट तो दे कि क्या ज़रूरी काम है ?“ मैंने पूछा।
               नहीं हिंट-विंट कुछ नहीं। बस आ जाना।और उसने फोन रख दिया।
               दूसरे दिन मैं ग्यारह बजे के आसपास पहुँच गई। चाय पिलाकर और अपने कुछ हाथ वाले काम खत्म करके वह बोली -
               भाभी जी, आज आपको किसी से मिलवाना है। इसलिए बुलाया है।
               मैंने सवालिया नज़रों से उसकी ओर देखा तो वह बोली -
               भाभी जी, कला को जानते हो ?“
               मैंने में सिर हिला दिया।
               वह इसी अस्पताल में फीजियोथैरापिस्ट है। शीलम के विभाग में ही है। उसने मुझे एक लड़के, लड़का तो नहीं कहना चाहिए, आदमी से मिलवाया है। वह तलाकशुदा है, उसके दो बच्चे हैं। एक लड़का और एक लड़की। दोनों मसूरी में पढ़ते हैं।
               वह शायद मेरे चेहरे के हाव-भाव देखने के लिए चुप हो गई।
               क्या करता है ?“
               उनका हौजरी का काम है। थोक का। सदर बाज़ार में दुकान है, पिता जी के साथ। माता जी भी साथ रहते हैं। एक बड़ा भाई है, वह अलग ग्रेटर कैलाश में रहता है। ये लोग तो चाँदनी चौक दरीबा में रहते हैं।
               पढ़ा-लिखा क्या है ?“
               ग्रेज्यूएट है।
               तुझे कैसा लगा ?“ मैंने उसके चेहरे पर नज़रे गड़ाकर पूछा।
               भाभी जी, पहली बार मेरा मतलब है, सुमीत के बाद...।वह झेंपते हुए बोली, “मुझे एक आदमी अच्छा लगा है। बात करने में बड़ा अच्छा है। सलीके वाला। हँसमुख है। बड़ा खुशदिल।उसकी आँखों में बहुत दिन बाद चमक देख रही थी।
               कहाँ मिली थी ?“
               पहली बार तो कला के घर। उनके परिवार के साथ। इन लोगों में आपस में पारिवारिक सांझ है। एक ही इलाके में रहते हैं। फिर कला के साथ गई थी, एक रेस्तरां में, वहाँ वह भी आ गया। तीसरी बार मैं और वह अकेले में एक रेस्तरां में मिले थे।
               तू उसके बच्चों से मिली है ? उसके मम्मी-पापा को ?“
               अभी तो नहीं।
               स्वाति, यह पता करना चाहिए कि पहली पत्नी से तलाक क्यों हुआ। उसके बारे में छानबीन कर लेनी चाहिए।
               स्वाति सोचों में डूब गई थी।
               स्वाति, तूने नाम तो बताया ही नहीं ?“
               विक्रम मल्होत्रा, पंजाबी है।
               तेरे जीजा जी उसको मिल लें तो अच्छा है। वो मालूम भी कर लेंगे कि वह किस तरह का बंदा है।
               मंजू के साथ भी आज ही मिलवाना है। वह चारेक बजे आएगा तो मंजू को को भी संग लेकर हम क्नॉट प्लेस के किसी रेस्तरां में बैठकर बातचीत करेंगे।
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               विक्रम को देखते ही उसकी शख्सियत बड़ी शानदार लगी। वह अपनी उम्र से बहुत कम लग रहा था। बातचीत में भी बड़ा हँसमुख व्यक्ति लगा।
               इधर-उधर की बातों के बाद मैंने पूछ ही लिया कि उसकी पत्नी के साथ अनबन क्यों हो गई थी।
               बस, क्या बताऊँ। वह तो पैसे की पीर है। हर वक्त पैसा पैसा। मेरे मम्मी-पापा के साथ बहुत बदतमीजी से पेश आती। बच्चों को मारना-पीटना। बहुत ही गुस्सैल है। गुस्से पर उसका कोई नियंत्रण नहीं। गुस्से में वह कुछ भी कर सकती है। दरअसल वह बहुत कुछ कर भी चुकी है।...बात करते करते विक्रम बहुत ही परेशान हो गया लगता था। उसकी आवाज़ टूट रही थी। मैंने बात को और आगे बढ़ाना ठीक नहीं समझा।
               स्वाति तो मराठी है और तुम पंजाबी। तुम्हारे घरवाले मान जाएँगे।मंजू ने पूछा।
               विक्रम हँसने लगा, “घर में तो अभी बात ही नहीं की। अगर मुझे पसंद है तो...।
               तुम्हारे बच्चे ?“
               लड़की सात साल की है, लड़का पाँच साल का। वे दोनों हॉस्टल में हैं। मैं महीने में एक बार उनको मिलने जाता हूँ। छुट्टियों में वे घर आ जाते हैं।
               बच्चों का अपनी मम्मी की तरफ...।
               वे अभी बहुत छोटे हैं। मम्मी की ओर से उनको प्यार मिला ही नहीं। दादी ने ही उन्हें बड़ा किया है। वह अपनी मम्मी को बिल्कुल याद नहीं करते। उनको प्यार करने वाली माँ की ज़रूरत है।
               घड़ी की तरफ देखते हुए वह बोला, “माफ़ करना। मुझे एक जगह ज़रूरी पहुँचना है। अपने काम के सिलसिल में। कहो तो आपको कहीं ड्राप करता जाऊँ ?“
               हमने उसका धन्यवाद किया और उसी रेस्तरां में ही बैठी रहीं।
               क्या ख़याल है आपका ?“ स्वाति मेरी और मंजू की ओर आस भरी नज़रों से देखते हुए बोली।
               देखने में, बातचीत करने में तो ठीक ही लग रहा है।मंजू बोली।
               तलाक और बीवी के बारे में जो उसने बताया है, वही हमको पता है। तस्वीर का दूसरा पहलू भी तो किसी से पता करना पड़ेगा। मंजू, तू जयंत को कहकर कुछ कर सकती है।
               कोशिश करके देखती हूँ। वैसे यह काम अगर स्वाति के जीजा जी करें तो ज्यादा बेहतर होगा।
               विक्रम जब तक पक्की तरह हाँ नहीं करता, मैं घर में बात नहीं करूँगी। मैं अपना मजाक नहीं उड़वाना चाहती।स्वाति ने गंभीर होकर कहा।
               स्वाति, तू दो बच्चों के संग एडजस्ट कर लेगी ?“ मैंने उसके चेहरे की ओर देखते हुए पूछा।
               वह हँसने लग पड़ी। फिर गंभीर होकर बोली, “अब मैं बच्चे पैदा करने की उम्र से तो आगे बढ़ आई हूँ। फिर बिना कष्ट के दो पले हुए बच्चे मिल रहे हैं तो अपने आप हालात के संग अपने को ढाल लूंगी। अब और कोई चारा भी नहीं।वह उदास होकर बोली।
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               उसके बाद मेरी स्वाति और मंजू से फोन पर निरंतर बात होती रहती।
               एक दिन विक्रम बग़ैर बताये स्वाति के घर चला गया था। उस दिन न माला घर पर थी, न उसके जीजा जी। कुछ देर बैठकर चाय पीकर वह चला गया था।
               एकबार अपने घर ले गया था। वहाँ सिर्फ़ एक नौकर था। वह चाय बनाकर ले आया था।
               भाभी जी, इस हफ़्ते वह मुझे अपनी गाड़ी में मसूरी ले गया था, अपने बच्चों से मिलवाने। बड़े प्यारे बच्चे हैं, मासूम से।
               मसूरी से एक ही दिन में वापस आ गए ?“ मैंने पूछा।
               वह इस बात का जवाब टाल गई।
               तूने माला के साथ बात की है ?“ मैंने ज़ोर देकर पूछा।
               अभी विक्रम अपनी ओर से कुछ ठोस नहीं बता रहा। मैं बात आगे कैसे चलाऊँ ?“ वह मायूसी के साथ बोली।
               शायद वह पहले विवाह के असफल होने के कारण फूंक फूंककर कदम रख रहा है।मैंने कहा।
               मंजू ने बताया, “भाभी जी, विक्रम तो अक्सर ही आकर स्वाति के कमरे में बैठा रहता है। छुट्टी के समय ही आता है। कई बार स्वाति को साथ ले जाता है।
               स्वाति का क्या कहना है ?“
               वह आजकल मेरे साथ बात करने से बचने लगी है। पूछने पर बात टाल देती है।
               विक्रम कहीं अपनी मौज-मस्ती के लिए ही तो नहीं इसको फुसला रहा ?“
               क्या पता ?“
               तू कला से बात करके देख। वो क्या कहती है ?“
               भाभी जी, कला के साथ मेरी ऐसी आत्मीयता नहीं है। आप ही एक दिन आकर स्वाति के साथ बात करो। आपके साथ वह ज्यादा खुली हुई है। इधर विक्रम के रोज़ रोज़ आने से बातें भी बड़ी जल्दी बनती हैं। लोगों ने उसके कमरे में ताक-झांक शुरू कर दी है। भाभी जी, मेरे से भी लोग पूछने लग पड़े हैं...।मंजू की आवाज़ बड़ी परेशान-सी लग रही थी।
               मेरा माथा ठनका। कहीं सुमीत की तरह विक्रम भी इसको अपना शून्य भरने के लिए तो इस्तेमाल नहीं कर रहा।
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               अमृता, इंदर, सिमर कुछ दिन के लिए घूमने बाहर गए हुए थे। मैं घर में अकेली उदास हो रही थी। मैंने स्वाति को फोन किया। उसको घर आने के लिए कहा। वह दूसरे दिन आई तो विक्रम साथ था। मैं दंग रह गई। दोनों के चेहरे बहुत खिले हुए थे।
               मैं रसाई में चाय बनाने के लिए गई तो स्वाति वहीं आ गई।
               भाभी जी, विक्रम के साथ मैं दो-तीन बार मसूरी हो आई हूँ, उसके बच्चों को मिलने। पिछली बार बहुत बारिश हो गई। हम बिल्कुल भीग गए। मेरे पास तो एक भी कपड़ा नहीं था। हम जिस होटल में ठहरे थे, वहाँ चादर लपेट कर मैंने अपने कपड़े प्रैस से सुखाए...।वह बताती हुई शरमा रही थी, उसका चेहरा लाल हो रहा था। खुश था।
               विक्रम को तो बड़ा अच्छा मौका मिल गया।मैंने मुस्कराकर कहा।
               भाभी जी, यही तो कमाल की बात है...ऐसे हालात में कोई भी डोल जाए। पर मैंने उसको वहाँ तक बढ़ने से मना कर दिया तो बोला - ठीक है, अगर तू चाहती है तो। मुझे ठंड लग रही थी। उसने मुझे एक पैग पिला दिया। बहुत ध्यान रखता है। सारी रात किस और जफ्फी से आगे नहीं बढ़ने दिया। जब तक विवाह के लिए कोई बात आगे नहीं बढ़ाता...।उसकी आवाज़ काँप रही थी।
               तू ज़ोर देकर पूछ।
               मुझे डर लगता है, कहीं मिलना ही बंद न कर दे।मैं चाय छान रही थी। मेरे हाथ काँप गए और चाय छलक गई।
               उससे कह कि अस्पताल में न आया करे, लोग यूँ ही बातें करेंगे।
               भाभी जी, मैं जानती हूँ, कौन लोग बातें करते हैं। ये मंजू, शीलम और बाकी सब मौका मिलते ही फ्लर्ट करते हैं। वे विवाहित हैं, बच्चों वाले हैं, इसलिए उनकी बात हँसी में टल जाती है।
               चल तू इनकी बात छोड़। मुझे तेरी चिंता है। मंजू भी तेरी बहुत चिंता करती है। हम तेरा भला ही चाहते हैं। आगे तू खुद सयानी है।
               चाय पीते इधर-उधर की बातें होती रहीं। विक्रम बोला, “स्वाति आपको बहुत मानती है।
               स्वाति बहुत बढ़िया, प्यार करने वाली, दूसरे का दर्द समझने वाली लड़की है, विक्रम। तू क्या सोच रहा है ? जो फै़सला करना है, करो।
               वह हँसने लग पड़ा। उसका हर बात पर हँसना अजीब लग रहा था। ऊपर से स्वाति ने बात को कुछ और मोड़ दे दिया।
               बाहर धोबिन प्रैस वाले कपड़े देने आ गई तो वहाँ मुझे समय लग गया। मैं वापस लौटी तो वे दोनों आलिंगनबद्ध हुए, मुँह से मुँह जोड़े, मेरे से बेखबर थे। एक मन हुआ कि वापस मुड़ जाऊँ। तभी फोन की घंटी बजने लगी। वे हड़बड़ाकर अलग हो गए। मैंने यूँ दिखावा किया जैसे मैंने कुछ देखा ही नहीं और उनकी ओर पीठ करके फोन सुनने लगी।
               मैं चाय के कप उठाने के लिए आगे बढ़ी तो स्वाति ने मुझे रोक दिया, “भाभी जी, यह मैं करुँगी। आप हमारे पास बैठो।
               मैं उनके सामने सोफे पर बैठ गई।
               विक्रम तुम पंजाब के किस शहर से हो ?“ मैंने कोई बात चलाने के लिए पूछ लिया।
               मेरे मम्मी-डैडी पाकिस्तान से हैं। वे बताया करते हैं कि वे रावलपिंडी, पेशावर से हैं। मुझे अच्छी तरह याद नहीं। इधर वाले पंजाब में तो हमारा कोई रिश्तेदार नहीं रहता। ज्यादातर दिल्ली में ही रहते हैं। कुछ गंगानगर, राजस्थान में हैं। बुआ का परिवार तो कैनेडा में बसा है।
               विक्रम, भाभी जी हर किसी से यह ज़रूर पूछते हैं कि तुम पीछे से कहाँ से हो ? जब मुझे पहलीबार मिले तो मेरे से भी इन्होंने यही सवाल पूछा था। जब मैंने बताया कि मैं मराठी हूँ तो ये बोले, अच्छा मेरे मायके भी महाराष्ट्र में हैं। अब तुम्हें बताएँगे कि वे भी पाकिस्तान से आए हैं। जब मेरी बड़ी दीदी ने बताया कि वे अमृतसर बहुत बरस रहे थे तो भाभी जी ने भी अपना अमृतसर से जो नाता था, बता दिया।
               स्वाति यह बताते हुए हँसे जा रही थी। उसको इतना हँसते हुए तो मैंने इधर बहुत कम ही देखा था। दीपक के समय यह सारी मज़लिस जब इकट्ठी होती थी तो मंजू, डॉ. गुप्ता, शीलम, स्वाति, सब खूब ठहाके लगा लगाकर हँसते थे। उसके बाद तो कभी इस तरह कोई बैठक मेरे सामने जमी ही नहीं। दीपक के जाने बाद तो मैं उनकी बैठकों से बाहर हूँ।
               वैसे स्वाति ने अभी अभी जो कहा था, वह ठीक भी है। मैंने कभी ध्यान ही नहीं दिया कि मैं हरेक से उसकी पृष्ठभूमि के बारे में पूछने लग जाती हूँ। शायद अनजाने ही, सहज-स्वभाव ही मैं यह सवाल पूछने लग जाती हूँ। भविष्य में मुझे इस बारे में सचेत रहना पड़ेगा।
               भाभी जी, क्या सोच रहे हो ?“ स्वाति ने पूछा। मैं हँस पड़ी।
               उस दिन विक्रम और स्वाति के जाने के बाद मुझे लगा कि विक्रम स्वाति के साथ विवाह करवाकर उसको खुश रख सकता है। मैं स्वाति की ओर से निश्चिंत-सी हो गई।
(जारी…)