Sunday 1 September 2013

उपन्यास



तेरे लिए नहीं
राजिन्दर कौर


10

मेरा दिल बहुत उदास हुआ पड़ा था। अमृता और इंदर घूमकर आ गए तो मैंने मुंबई जाने के लिए टिकट रिजर्व करवा ली।
               बाज़ार से कुछ छोटी-मोटी खरीदारी करके मैं घर आई तो अमृता ने बताया, “स्वाति आंटी का फोन आया था। उसके पिता जी अस्पताल में हैं, बहुत बीमार हैं। उसके बाद मंजू आंटी का फोन आया था कि शाम को वे अस्पताल जाएँगे तो आपको संग ले जाएँगे।
               मैंने घड़ी की ओर देखा। शाम के छह बज चुके थे। मैं बहुत थकी हुई थी। कुछ समझ में नहीं आया कि क्या करूँ। इस उलझन में थी कि अमृता मेरे लिए चाय बनाकर ले आई।
               मम्मी, तुम चिंता न करो। इंदर काम से आएगा तो तुम्हें अस्पताल ले जाएगा।
               पर इंदर के घर आने का समय निश्चित नहीं होता। फिर सुबह का गया बेचारा थककर लौटेगा। कल चली जाऊँगी।मैंने चाय पीते हुए कहा।
               दूसरे दिन अमृता ने सिमर को अपनी बहन के घर छोड़ा और हम अस्पताल चली गईं।
               स्वाति के बाबा की हालत तो गंभीर ही थी। माला अंदर बाबा के पास थी। बाकी सब बरामदे में बैठे थे। स्वाति के जीजा जी भी अंदर-बाहर आ-जा रहे थे। सुजाता के साथ एक औरत को बैठे देखा तो मैं पहचान न पाई। सुजाता ने ही बताया कि वह अंजलि है। उसी दिन दिल्ली पहुँची है। मैंने उसको एकबार ही देखा था, बबली के विवाह पर। इसलिए पहचान भी कैसे लेती। वह उदासी की मूरत बनी बैठी थी।
               ये तीन बहनें तो दिल्ली में इकट्ठी हैं, दुख-सुख साझा कर लेती हैं, अंजलि बेचारी अकेली पड़ जाती है। मैंने मन ही मन सोचा।
               कृष्णा को मैंने पहचान लिया था। वह दूसरे बैंच पर बैठी थी। सुजाता ने ही बताया था कि उसके साथ में उसका भाई बैठा था।
               इतनी देर में स्वाति बरामदा पार करके हमारे पास आती दिखाई दी। उसके साथ कैंटीन से एक लड़का चाय के गिलास लेकर आ रहा था।
               कुछ देर बाद स्वाति मेरे करीब आकर बैठ गई। उसने कॉटन का साधारण-सा सूट पहन रखा था। उसका चेहरा मुरझाया हुआ था।
               स्वाति ने बताया कि बाबा का निमोनिया बिगड़ गया है। कृष्णा आंटी ने बहुत देर से बताया है।
               बातों ही बातों में मैंने स्वाति को अपने मुंबई जाने का प्रोग्राम बताया।
               फिर जल्दी आ जाना। आप वहाँ जाते तो हफ्ते के लिए हो और लगा महीना आते हो।स्वाति मेरा हाथ पकड़कर बोली।
               मैंने हल्का-सा हँसकर हाँमें सिर हिला दिया।
               भाभी जी, कल ही पता चला है कि बाबा ने जनकपुरी वाला घर बेचकर एक फ्लैट तिलक नगर के आसपास कहीं लिया है। वो कृष्णा आंटी के नाम पर है। हम बहनों को भनक तक नहीं पड़ने दी। मेरे पास तो नौकरी है। सुजाता दीदी के लिए ही कुछ कर देते। कुछ पैसा अंजलि दीदी को ही दे देते। उनकी हालत भी खराब है।स्वाति अंजलि की ओर देखते हुए बोली।
               माला दीदी बाबा के लिए इतना कुछ करती रही। उन्हें भी बाबा ने कुछ नहीं बताया। भाभी जी, बाबा मुझे इतना प्यार करते थे, किसी ज़माने में। छोटी होने के कारण मैं उनकी सबसे लाडली थी। अपनी औलाद के लिए प्यार के सारे सोते सूख कैसे गए। अब हम चारों बहनें बाबा के लिए ईश्वर से मन्नत मांग रही हैं कि वे ठीक हो जाएँ।स्वाति की आँखें लबालब भरी हुई थीं। आवाज़ काँप रही थी। मैं उसकी पीठ सहलाकर उसे शांत करने की कोशिश करती रही। धीरज बँधाती रही।
               तीसरे दिन मैं मुंबई के लिए रवाना हो गई। वहाँ मेरा एक महीना लग गया।
               अमृता ने फोन पर बताया था कि स्वाति के बाबा गुज़र गए हैं। क्रिया की रस्म तिलक नगर के एक छोटे-से मंदिर में हुई थी। स्वाति ऑटो लेकर गई थी। तिलक नगर के इलाके में बड़ी मुश्किल से उन्हें महावीर नगर का मंदिर मिला था। गिने-चुने लोग थे।
               मैंने स्वाति को अफ़सोस का एक लम्बा ख़त मुंबई से लिख भेजा था।
               दिल्ली वापस आने पर मैंने स्वाति से मिलने का कार्यक्रम बनाया। उसके बाबा के गुज़रने का अफ़सोस करने के लिए मैंने माला के घर जाना ही उचित समझा।
               माला बड़ी कमज़ोर लग रही थी। स्वाति भी बहुत उखड़ी हुई थी। उसके जीजा जी घर पर नहीं थे।
               माला बाबा की बातें याद करती रही। कहने लगी, “बाबा हमारा सब बहनों का बड़ा ध्यान रखते थे। हमारी पढ़ाई में वे खास रुचि लेते। आज जो मैं डॉक्टर हूँ, उनके उत्साह और प्रेरणा के कारण ही। हमारी माँ भी नागपुर में प्रोफेसर थी। वह भी यही कहती - तुम पढ़ो। घर का काम मैं खुद निपटा लूँगी। पर उम्र के पिछले पाँच वर्ष माँ बिस्तर से लगी रही। उसके बाद बाबा टूट गए। बिखर गए। एक बात से तो अच्छा ही था कि कृष्णा आंटी ने उनको संभाल लिया था। पर हम बहनें इस बात को स्वीकार नहीं कर सकीं। वो बेटियों की जिम्मेदारी से मुँह मोड़कर अपने आप में मग्न हो गए। शायद इसमें हम बहनों का भी दोष था। किसी ने भी कृष्णा आंटी से सीधे मुँह बात नहीं की। उनको घर का सदस्य नहीं समझा...। खै़र ! यही लिखा था हमारी किस्मत में।
               स्वाति तो चुप धारे बैठी थी। वैसे भी अपने बड़ी बहन के सामने वह अधिक नहीं बोलती थी।
               सुजाता कहीं भी नज़र नहीं आ रही थी। मैंने उसके बारे में पूछा तो पता चला कि वह चिराग को लेकर पॉर्क में गई है।
               अंजलि बाबा की मौत के बाद कुछ दिन माला के पास रही थी। उसके बाद स्वाति उसको उसके घर छोड़ आई थी।
               स्वाति को फिर से मिलने का वायदा करके मैं अपने घर लौट आई।
(जारी…)