tag:blogger.com,1999:blog-8522042014330350079.post5490828769722075844..comments2021-03-24T15:00:36.940+05:30Comments on राजिन्दर कौर स्मृति: उपन्यासराजिन्दर कौरhttp://www.blogger.com/profile/04016036515708584604noreply@blogger.comBlogger8125tag:blogger.com,1999:blog-8522042014330350079.post-71341083101270644802012-05-09T22:09:27.321+05:302012-05-09T22:09:27.321+05:30प्रिय राजिन्दर जी ,
सत्सिरी अकाल,
सब से पहले तो एक...प्रिय राजिन्दर जी ,<br />सत्सिरी अकाल,<br />सब से पहले तो एक शिकायत है कि अगली किश्त जल्दी जल्दी नहीं मिलाती याने सात दिनों तक इंतज़ार करना पड़ता है .… पर चलो देर आये ,दुरुस्त आये । अब आगे आपकी कहानी का एक-एक शब्द ऐसा लगता है कि मेरी नज़र उस मंज़र को देख भी रही है क्यों की १९६८ में मैं भी उसी कोलीवाडा की चाल में अपने दो छोटे-छोटे बचों के साथ रहती थी। मेरे माता-पिता विले परले में बड़े से घर में रहते थे । पर किसी कारणवश मेरे पति उनके साथ नहीं रहना चाहते थे, पर हम महंगा घर नहीं ले सकते थे इसलिए एक बालकोनी में रेंट पर रहते थे… उस वक़त ६० रु रेंट देते थे और ५ रु बिजली का…बस २ महीने ही रहे…हम ने माँ को भी नहीं बताया था कि हम किस तरह से रह रहे हैं। एक दिन माँ को पता चल गया तो वो मिलने चली आई और देख कर रो पड़ी। मेरे पति को हाथ जोड़ कर बोली - इतना बड़ा घर होते हुए आप यहाँ… चलिए, अपने घर। पता नहीं कैसे वो मान गए और हम माँ के साथ विले पार्ले चले गए। आज भी वो गुरुद्वारा…वो सनातन धर्म मंदिर, वो गन्दी-सी सड़कें और वो मार्केट याद है मुझे…फिर कुछ दिनों बाद हमने अपना फ्लैट ले लिया अँधेरी वेस्ट में… मैं टीचर थी… मेरा स्कूल अन्धेरी ईस्ट में था - श्री घनश्यामदास पोद्दार… वहां मैंने ३६ साल तक काम किया… जनवरी २००० में मेरे पति का देहांत हो गया और २००० सितमबर में मैं रिटायर्ड हो गई। एक बेटा यू के ही था तो उसके पास चली आई। फिर यहीं की हो गई। फिर भी अपने वतन की एक-एक दिन की याद भुलाए नहीं भूलती… उस पर कोई ऐसी कहानी दिल के तारों को छेड़ जाती है और मन को शांति मिलाती है … आप की आभारी हूँ कि आपकी परतों ने मेरे दिल की परतों को छू लिया l <br />दिल ढूँढ़ता है फिर वही फुर्सत के रात दिन… बैठे रहे तस्वुरे जाना किए हुए…। आप लिखती रहें, हम पढ़ते रहें तो मज़ा जीने का और भी आत्ता है …<br /><br />भूल चूक माफ़ <br />-शशि वैद <br />vaid.shashi@gmail.comAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8522042014330350079.post-3334481015922205792012-05-08T22:03:51.490+05:302012-05-08T22:03:51.490+05:30rajinderji
jaise jaise kahaani aage bad rahi hai ...rajinderji <br />jaise jaise kahaani aage bad rahi hai vaise vaise utsuktaa bhi badati jaa rahi hai kya hoga jyoti aour raghubeer ke prem ka -sath hi sath purani mumbai ka sajeev chitar bhi ankhon ke samne khinchta chala ja rahaa hai yeh sab jagah meri dekhibhali hain --bahut nbaar gandhi market gaye huye hain khas ker jab chole bhature khane hon to wahin jaate hain aour woh faluda kulafi --aap ne sab ki yaad dila di <br />i m enjoing very much --eagerly waiting for next apisodeshashihttps://www.blogger.com/profile/01774508008653122515noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8522042014330350079.post-62515005500692781842012-05-05T18:46:15.011+05:302012-05-05T18:46:15.011+05:30aapke upanyaas ki yeh kadii bhii achchha prabhav c...aapke upanyaas ki yeh kadii bhii achchha prabhav chhod rahii hai ab utsuktaa bad rahii hai agle anshon ko padne ke liye.ashok andreyhttps://www.blogger.com/profile/03418874958756221645noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8522042014330350079.post-29278960404102802162012-05-04T22:55:27.672+05:302012-05-04T22:55:27.672+05:30रघुबीर की जीवन-यात्रा को जानने के साथ ही उपन्यास क...रघुबीर की जीवन-यात्रा को जानने के साथ ही उपन्यास को आगे पढ़ने की उत्कंठा बढती जाती है. शुभकामनाएँ.<br />डॉ. जेन्नी शबनमAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8522042014330350079.post-54817887748308590092012-05-03T19:58:38.200+05:302012-05-03T19:58:38.200+05:30रंजना जी, आप मेरे उपन्यास के शुरूआती चैप्टर इस पोस...रंजना जी, आप मेरे उपन्यास के शुरूआती चैप्टर इस पोस्ट के नीचे दिए गए 'ओल्डर पोस्ट आइकॉन' पर क्लिक करके पढ़ सकती है…। <br />-राजिन्दर कौरराजिन्दर कौरhttps://www.blogger.com/profile/04016036515708584604noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8522042014330350079.post-51110521289735634352012-05-03T19:54:56.126+05:302012-05-03T19:54:56.126+05:30THANX 4 SENDING DA 4TH CHAP---- OF PARATEN. BUT I ...THANX 4 SENDING DA 4TH CHAP---- OF PARATEN. BUT I DIDN'T READ DA FIRST THREE CHAP-------WHICH R MORE IMPORTANT TO KNOW DA WHOLE STORY. CAN U DO IT. HOPE U R FINE MRS KOUR. AGAIN THANX FOR UR IMMOTION.............<br /> <br />RANJANA SRIVASTAVA<br />EDITOR-SRIJANPATH<br />SILIGURIAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8522042014330350079.post-87718187839664579662012-05-02T22:21:38.211+05:302012-05-02T22:21:38.211+05:30उपन्यास में एक गति है जो पाठक को बोर नहीं होने देत...उपन्यास में एक गति है जो पाठक को बोर नहीं होने देती, मुझे तो पढ़ते समय ऐसा ही लग रहा है…क्या इस उपन्यास को पाक्षिक की बजाय हर सप्ताह देना संभव नही है ? पता नहीं क्यों, एक बेसब्री सी हो रही है…कुसुमhttps://www.blogger.com/profile/00109502242335306418noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8522042014330350079.post-5829445965701879772012-05-01T23:44:54.445+05:302012-05-01T23:44:54.445+05:30अपने स्वास्थ्य का खयाल रखिए .... उपन्यास अच्छा लग ...अपने स्वास्थ्य का खयाल रखिए .... उपन्यास अच्छा लग रहा है ...संगीता स्वरुप ( गीत )https://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.com