तेरे लिए नहीं
राजिन्दर कौर
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एक दिन स्वाति का हाल जानने के लिए मैंने
फोन किया।
वह बोली, “भाभी जी, हाल क्या ठीक होना है। अंजलि दीदी की बड़ी बेटी अणु घर से अकेली यहाँ आ गई
है। घर में बड़ी तनातनी चल रही है। जीजा जी दीदी को कह रहे हैं कि अणु को घर छोड़कर
आओ। अणु जिद्द कर रही है कि वह यहीं रहेगी,
वापस नहीं जाएगी।
यहीं पढ़ेगी। वहाँ अंजलि दीदी बहुत परेशान है।“
“यह तो परेशानी वाली ही बात है।“ मैंने कहा।
“शायद मैं और माला दीदी अणु को छोड़ने जाएँ।
जीजा जी कहते हैं कि हमारा घर कोई धर्मशाला नहीं है।“ स्वाति अचानक चुप हो गई। मैं ‘हैलो-हैलो’ करती रहती तो कुछ
देर बाद उसकी टूटती हुई आवाज़ आई-
“भाभी जी, अणु जब बबली के
विवाह पर दिल्ली आई थी तो यहाँ का रहन-सहन,
दिल्ली की चकाचैंध
देखकर गई थी। वह सोचती है, यहाँ बड़ी मौज है। जब हम उसके साथ वापस
जाने की बात करते हैं तो वह रोने लगती है। सुजाता दीदी भी साथ में रोने लगती है।“
“बबली कहाँ है ?“
“वह यहीं दीदी के पास ही है। कभी कभी अपनी
ससुराल विकासपुरी जाती है। उसको कोई दिक्कत न हो इसलिए जीजा जी ने उसको कार ले दी
है। अनिल के पास तो मोटर साइकिल है।“
“तेरी अंजलि दीदी क्यों नहीं लेने आ जाती ?“
“अंजलि दीदी अकेली सफ़र नहीं कर सकती। वह
मानसिक तौर पर अभी भी पूरी तरह ठीक नहीं। यह तो जीजा जी हैं जिन्होंने दीदी का
संभाल रखा है। इस बात की हैरानी होती है कि दीदी की इस हालत में भी जीजा जी ने
इतने बच्चे क्यों पैदा किए। शायद पुत्र के लिए। अब सबसे छोटा लड़का है, पर वह शारीरिक तौर पर बहुत ही कमज़ोर है। एक बेटी मानसिक तौर पर कमजोर है।
“हालत तो गंभीर ही है। फिर तो तेरे जीजा जी
भी बच्चों को छोड़कर नहीं आ सकते।“
“भाभी जी, अंजलि के विवाह पर
अंजलि दीदी का सारा परिवार आया था। उस वक़्त बड़े जीजा जी ने उनका बड़ा अपमान कर
दिया था। बहुत बुरी तरह बेइज्ज़ती करके घर से निकाला था। अब तो वो कभी भी इधर नहीं
आएँगे और न ही दीदी को कभी भेजेंगे।“
“ओह ! यह तो बुरी बात है।“
“है तो बुरी बात, पर मेरा क्या ज़ोर है किसी पर। मैं खुद उनके घर में मज़बूरीवश रह रही हूँ।
उधर कोई दूसरा प्रबंध हो जाए तो सुजाता दीदी को लेकर चली जाऊँ। पर सुजाता दीदी को
वो नहीं जाने देंगे। उसके सिर पर तो उनका सारा घर चल रहा है। दीदी ने सबकुछ संभाल
रखा है।“
“अंजलि के साथ उनकी ऐसी क्या नाराज़गी हो गई
?“ मैंने उत्सुकता वश पूछा।
“माला दीदी ने अंजलि दीदी को पाँच हज़जार
रुपये दिए थे। वे इतना खर्च करके आए थे। घर में अन्य रिश्तेदार भी थे। वे हफ्ताभर
तो यहाँ ठीकठाक रहे। जिस दिन उन्हें वापिस जाना था, अंजलि दीदी ने रोना
शुरू कर दिया। वह अभी जाना नहीं चाहती थी। बच्चों का भी दिल लगा हुआ था। पर यादव
जीजा जी का जाना ज़रूरी था। नौकरी से छुट्टी लेकर आए थे। उन्होंने सोचा कि वह अंजलि
और बच्चों को छोड़ जाते हैं। कुछ दिन बाद आकर ले जाएँगे। बस, बड़े जीजा जी का पारा एकदम चढ़ गया। वो कुछ भी अबा-तबा बोलते गए। माला दीदी
ने जीजा जी को चुप कराने की बहुत कोशिश की। घर में रोना-धोना मच गया। सुजाता दीदी, माला दीदी, अंजलि दीदी सब रो रही थीं। बच्चे सहमे हुए
थे। मेरे दिल की धड़कन एकदम बढ़ गई...।“
“पर बड़े जीजा ने ऐसा क्यों किया ?“ मैंने ज़रा हैरानी से पूछा।
“दरअसल,
उस दिन बबली ने
फेरा डालने आना था। साथ उसके ससुराल वालों का डिनर था। बड़े जीजा जी बबली के कारण
वैसे ही टेंशन में थे। उसने जो कारा किया था,
उसके कारण डरे-डरे
रहते थे कि किसी तरह विवाह ठीक हो जाए। लड़का मुकर न जाए। फिर पंजाबी परिवार। उस
वक़्त अंजलि दीदी अपना रोना रो रही थी। बस,
पता नहीं बड़े जीजा
जी का पारा एकदम आसमान छूने लगा तो छोटे जीजा जी ने सामान उठाया और अंजलि का हाथ
पकड़कर उसे घसीटते हुए बाहर निकल गए। पीछे पीछे बच्चे भी चले गए। मैंने झटपट चप्पल
पहनीं, पर्स उठाया और उनके पीछे पीछे दौड़ी।
स्टेशन तक साथ गई। रास्ते भर न जीजा जी कुछ बोले, न दीदी।“
“फिर ?“
“स्टेशन पहुँचे तो पता चला कि ट्रेन निकल
चुकी थी। छोटे जीजा जी किसी दूसरी गाड़ी का पता करने के लिए दौड़ने-भागने लगे। मैं
दीदी और बच्चों को लेकर एक बेंच पर बैठी रही। अंजलि दीदी लगातार चुपके चुपके रोये
जा रही थी। बोली, “मैं तो बाबा से मिलकर लड़ना चाहती थी कि
तुमने उस बंगालिन को घर लाकर हम सबसे हाथ धो लिए। हम बहनें तो उनके लिए मर ही गई
हैं। बबली के विवाह पर मैं खास तौर पर उनसे आगे बढ़कर मिलने गई। उन्होंने बस सिर पर
हाथ फेरकर प्यार दे दिया। मैंने बच्चों के साथ मिलाया। उन्होंने बस थोड़ी-सी बात
की। एकबार नहीं कहा, घर आना।“ अंजलि दीदी
हिचकियाँ भरकर रोने लगी। छोटा बेटा माँ से चिपट गया। अणु माँ को शांत कराने लगी।
आसपास से गुज़रती भीड़ हमें देख रही थी।“ स्वाति बताते बताते चुप हो गई थी।
कुछ देर बाद वह फिर बोली, “भाभी जी, अंजलि दीदी की बातों से लग रहा था कि वह
खुश नहीं है। वह कह रही थी - मैंने वहाँ छोटे से शहर में क्या सुख लिया है। तेरा
जीजा मुझे नोच नोच खाता है। मुझे अंजलि दीदी की यह बात बड़ी अजीब लगी। माला दीदी तो
हमेशा कहती थी कि छोटा जीजा दीदी का बहुत ख़याल रखता है। सच्चाई का क्या पता। दीदी
वहाँ अकेली पड़ गई है। उसको कोई पूछने वाला नहीं।“
“तू कभी अंजलि दीदी के पास नहीं गई ?“ मैंने पूछा।
“बस,
एक-दो दिन के लिए
दो-तीन बार गई हूँ। ज्यादातर माला दीदी ही जाती थी। अंजलि दीदी उस दिन कहने लगी -
माला दीदी हमेशा कहती थी, तू बच्चों को लेकर मेरे यहाँ आ और रह कुछ
दिन। अब मैंने रहना चाहा तो जीजा जी ने...। मैं बड़ी दीदी के घर को ही अपना मायका
समझने लग पड़ी थी। अब उससे भी नाता टूट गया है। मेरा तो दिल्ली से भी रिश्ता
खत्म...। दीदी की ये बातें मुझे तीर की भाँति बींध रही थीं। मैं अंदर ही अंदर तड़प
रही थी। मैं बच्चों के लिए खाने-पीने का कुछ सामान ले आई। जीजा जी से पता चला कि
एक घंटे बाद एक अन्य गाड़ी है, जो दूसरे प्लेटफार्म से जाएगी। उन सबने
सामान उठाया और दूसरे प्लेटफार्म पर चले गए। भरी आँखों से मैं घर लौटी तो बबली, अनिल और उसके परिवार के लोग हॉल में बैठे थे। हँसी-ठहाकों की आवाज़ें आ
रही थीं। मैं चुपचाप रसोई में चली गई। वहाँ सुजाता दीदी पसीना पसीना हुई काम में
जूझी पड़ी थी। मेरी तरफ उसने सवालिया नज़रों से देखा। मेरे रुके हुए आँसू रुकने का
नाम ही न लें।“
“स्वाति, बहुत दुख हो रहा है, ये सब बातें सुनकर।“ मैंने डरे मन से कहा।
“भाभी जी, अणु के यहाँ टिके
होने का एक कारण और भी है। बबली उसके हक में बोलती है।“ स्वाति ने बताया।
“स्वाति, असली जिम्मेदारी तो
तेरी माला दीदी और जीजा जी को ही उठानी पड़ेगी। बबली के कहने का क्या है।“
“भाभी जी, एक जवान लड़की की
जिम्मेदारी लेना बहुत कठिन है।“
“तू ठीक कहती है। आजकल अपने बेटों-बेटियों
पर ज़ोर नहीं चलता, फिर दूसरे की बेटी, वह भी जवान ! तेरी अंजलि दीदी का
इलाज अभी भी चलता है ?“ मैंने पूछा।
“क्या मालूम ? यहाँ तो वह एक साल मेंटल अस्पताल में रही थी। फिर बिलकुल ठीक हो गई थी।
उन्हीं दिनों में कृष्णा हमारे घर आने लग पड़ी थी।“
“कृष्णा कौन ?“
“आपको बताया था न, उस बंगालिन के बारे में। उसका नाम कृष्णा है।“
“अच्छा !“
“भाभी जी, बाबा ने कृष्णा को
घर लाने की जल्दबाजी में दोनों बहनों का विवाह जल्दी जल्दी कर दिया। बाबा को अंजलि
दीदी का बहुत डर था। लड़के की ओर से ‘हाँ’
होने पर बाबा ने
विवाह करने में देर नहीं लगाई। छोटे जीजा तो यू.पी. के हैं - राम प्रसाद यादव। न
किसी ने उनका घरबार जाकर देखा, न ही कुछ खोजबीन की।“
“तेरी बड़ी दीदी ने हाँ कर दी ?“
“तब माला दीदी बीमार थी। उनका अबार्शन हुआ
था। एक मम्मी के न रहने पर हम सब बहनें बर्बाद हो गईं। हमारे बाबा को चाहिए था, हम सबको संभालते, पर वह अपने ही भविष्य के अकेलेपन से बचने
के लिए या...।“ स्वाति की आवाज़ में बड़ी परेशानी थी।
(जारी…)