तेरे लिए नहीं
राजिन्दर कौर
6
मरीज़ों का सिलसिला खत्म हुआ तो मेरे
वापस जाने का समय हो रहा था। परंतु तभी इंदर का फोन आ गया। उसका काम अभी समाप्त
नहीं हुआ था। उसने कहा कि वह घंटे भर तक आएगा।
चाय पीते हुए मैंने स्वाति से कहा कि वह माला
दीदी की शादी की बात बता रही थी। कुछ देर वह सामने वाली दीवार की ओर देखती कुछ
सोचती रही, फिर
कहने लगी -
“बहुत वर्षों बाद घर में रौनक हुई थी। माला दीदी
की शाद में जीजा जी की ओर से तो बहुत कम रिश्तेदार आए थे। इधर भी मम्मी के न होने
के कारण सबके दिल तो टूटे हुए ही थे। एक बहन अस्पताल में थी। पर मैं बड़ी खुश थी।
नए कपड़े पहनेकर मैं फूली न समाती। जीजा जी के आगे-पीछे घूमती। उस विवाह के समय
कृष्णा को देखकर कोई पूछता कि वो कौन है। तब तक घर में किसी को भी उसके बारे में
कुछ भी पता नहीं था।
“विवाह के बाद दीदी फिर अमृतसर चली गई। घर में
कोई रौनक ही न होती। तभी जनकपुरी में बाबा का डी.डी.ए. का फ्लैट निकल आया। बाबा ने
ऐलान कर दिया कि सरोजिनी नगर का सरकारी मकान छोड़कर जनकपुरी शिफ्ट करना है। जनकपुरी
शिफ्ट करने का सबसे बड़ा नुकसान था - मौसा मौसी से दूर होना। बाबा रिटायर होने वाले
थे।
“अंजलि दीदी भी घर आ गई थी। एक दिन बाबा सुजाता
दीदी, अंजलि
दीदी और मुझे अपने साथ कृष्णा के घर ले गए। उन्होंने बताया कि उसका भाई अमेरिका
में हैं और वह भी वहीं जाने वाली है। उसके पति की मौत हो चुकी थी। बच्चा कोई था
नहीं। हम उसको आंटी कहकर बुलाने लग पड़े।“ अब अक्सर ही वह घर आने लग पड़ी। हमारे लिए खाने
का कुछ न कुछ सामान लेकर आती। एक दिन शाम को बड़ी देर से आई। सुजाता दीदी ने खाना
बनाया तो वह साथ में मदद करने लग पड़ी। रात हो गई। बाबा कृष्णा आंटी से कहने लगे -
“रात बहुत हो गई है। तुम आज यही रह जाओ। कल
सवेरे चली जाना।“
“वह तुरंत मान गई। सुजाता दीदी को आंटी का रात
हमारे घर में ठहरना पसंद नहीं आया। वह सवेरे उठकर बाबा के साथ चली।“
“सुजाता दीदी ने कहा - आज हम सब मौसी से मिलने
जाएँगे।“
“अंजलि दीदी बोली - बाबा से तो पूछा नहीं।“
“बाबा के घर आने से पहले लौट आएँगे। सुजाता दीदी
बोली।“
“मैं स्कूल से लौटी तो दीदी ने जल्दी जल्दी मुझे
खाना खिलाया और हम मौसी की ओर चल पड़े। दीदी और मौसी पता नहीं आपस में क्या बातें
करती रही। उनके चेहरे बहुत तने हुए थे। अंजलि दीदी तो बहुत ही सीधी थी। मैं इतना
समझ गई थी कि कृष्णा आंटी को लेकर कोई बात चल रही है।“
“दूसरे दिन सुजाता दीदी ने बाबा से कहा -बाबा,
मौसा मौसी के
लिए यहीं किराये का घर खोज लेते हैं। वे हमारे करीब आ जाएँगे तो हमारे लिए अच्छा
रहेगा।“
“बाबा ले इतना ही कहा - देखेंगे।“
“सुजाता दीदी ने माला दीदी को एक ख़त लिखा। माला
दीदी ख़त मिलते ही दिल्ली आ गई। माला दीदी की बाबा के साथ बहुत देर बहस चलती रही।
वही कृष्णा आंटी को लेकर। दीदी तीन चार दिन हमारे पास रही। उसने दो घर छोड़कर मौसी
के लिए एक कमरे का सैट किराये पर तलाश लिया। बाबा हैरान रह गए।“
“भाभी जी, एक दिन कृष्णा आंटी फिर आ गई। मौसी के
साथ भी हँस-हँसकर बातें करती रही। यही बताती रही कि शीघ्र ही वह अपने भाई के पास
अमेरिका चली जाएगी। उस रात वह फिर हमारे घर पर ही रह गई।“
“एक दिन बाबा ने कहा कि आंटी ने घर खाली करना
है। उसकी टिकट आ जाएगी तो वह चली जाएगी। कुछ दिन उसको यही हमारे पास ही रहना है।
उसके पास और कोई जगह नहीं है।“
“सुजाता दीदी, सवेरे पूजा करती तो रोज़ प्रार्थना करती
कि उस आंटी की टिकट जल्दी आए और वह चली जाए। वह हमारे कमरे में ही सोती थी। एक रात
अंजलि दीदी ने शोर मचा दिया, उसने आंटी को बाबा के साथ सोये हुए देख लिया
था। वह तो भड़क उठी। उसने गुस्से में आंटी की खूब पिटाई की। बाबा छुड़ाने के लिए आगे
बढ़े तो उनके साथ भी हाथापाई की। पड़ोसी इकट्ठा हो गए। डर था, अंजलि दीदी को फिर से फिट पड़ने ने आरंभ
हो जाएँ। सुजाता दीदी ने माता दीदी को तार भेजकर बुला लिया।“
“कृष्णा का क्या हुआ ?“ मैंने उत्सुकता से पूछा।
“वो तो अपना सामान उठाकर वहाँ से चली गई। कुछ
दिन बाद पता चला कि वह जनकपुरी में ही चार गलियाँ छोउ़कर एक कमरा लेकर रह रही है।“
“सुजाता दीदी और अंजलि दीदी बहुत रोतीं-कलपती।
उन्हें रोता देखकर मैं भी रोने लगती। मौसी हम सबकी हिम्मत बंधाती। बाबा मौसी से
बहुत चिढ़ने लग पड़े। बाबा घर होते तो वह हमारे घर न आतीं।
“बाद में पता चला कि बाबा शाम को उसी कृष्णा
आंटी के घर चले जाते हैं। रात में घर आ जाते हैं। एक दिन अमृतसर से जीजा जी की तार
मिली। जीजी जी ने सुजाता दीदी को भेजने के लिए कहा था। माला दीदी का अबाॅर्शन हुआ
था। तब दीदी बहुत टेंशन में रहती थी। हमारी बहुत चिंता करती थी। दूसरा, बाबा के रवैये ने दीदी को चिंता में
डाल दिया था। ऊपर से नौकरी।“
“अंजलि दीदी तो घर नहीं संभाल सकती थी। मेरा
स्कूल था। मौसी आकर सब संभालती या हम मौसी के यहाँ चली जाती। ऐसे अवसर पर बाबा को
अमृतसर जाना चाहिए था, दीदी
का हालचाल जानने के लिए, पर वह तो अपने आप में ही मस्त थे।“
“बाबा ने सुजाता दीदी के रिश्ते के लिए अख़बार
में इश्तहार दिया। लड़के को मिले। सुजाता दीदी दिल्ली वापस आई तो दोनों को मिलवा
दिया। सदाशिव जीाजा जी मराठी थे। वह देखने-बोलने में बहुत अच्छे थे। उनका अपना एक
छोटा-सा पिं्रटिंग पै्रस था। घर भी अपना था। घर में माँ और बहन थे। दीदी को भी सब
ठीक लगा। दीदी ने ‘हाँ’
कर दीं माला
दीदी बीमारी के कारण पहले नहीं आ सके। विवाह के समय दीदी और जीजा जी आए। विवाह
पूरे मराठी रीति-रिवाज के अनुसार हुआ। घर में खूब रौनक रही। नागपुर से कई
रिश्तेदार आए। उस शादी के दौरान कृष्णा एक बार भी दिखाई न दी। हमने सोचा, वह अमेरिका चली गई होगी।
“तुम्हारी बातें खत्म नहीं हुई। ?“ सामने इंदर खड़ा मुस्करा रहा था।
स्वाति का भी घर जाने का समय हो गया था। पाँच
दस मिनट इधर-उधर की गपशप के बाद इंदर जाने के लिए उतावला पड़ गया।
रात में बिस्तर पर लेटते ही मेरा ध्यान फिर से
स्वाति की बातों की ओर चला गया। स्वाति ने बताया था कि दस ग्यारह साल पहले सुजाता
का घरवाला सदाशिव कहीं लापता हो गया था। बड़े जीजा जी ने बहुत तलाशा था, पर कुछ पता नहीं चला। अब सुजाता ने
उसकी वापसी के उम्मीद छोड़ दी थी। अब तो उसके बारे में होंठों पर बात भी नहीं लाती
थी। घर में उसका जिक्र बंद हो गया था।
शुरू में सुजाता ससुराल में बहुत खुश थी। दो
वर्ष बाद एक बेटा पैदा हुआ, पर शीघ्र ही गुज़र गया। फिर बच्चा हुआ ही नहीं।
सुजाता की सास के तेवर ही बदल गए। हाथ धोकर सुजाता के पीछे पड़ी रहती। बात बात पर
उसमें दोष निकालती। सदाशिव हमेशा सुजाता का पक्ष लेता। उसकी ननद पुष्पा भी हमेशा
सुजाता का साथ देती। ननद की उम्र बढ़ रही थी। कोई योग्य वर नहीं मिल रहा था। वह एक
स्कूल में पढ़ाने जाती थी। सदाशिव की माँ हर बात के लिए सुजाता को ही जिम्मेदार
ठहराती थी।
देशे इमरजेंसी लग गई तो शिव की पिं्रटिंग पै्रस
पर काम बहुत ही कम हो गया। घर का गुज़ारा कठिन हो गया। सदाशिव के पिता की पेंशन से
उसी माँ के कुछ खर्चे निकल जाते। पै्रस पर काम कम हो जाने से घर में क्लेश बहुत बढ़
गया। एक दिन दुखी होकर सुजाता माला दीदी के घर आ गई। तब बबली बहुत छोटी थी। पहले
भी वह कई बार माला दीदी के घर आकर कुछ दिन रह जाती थी। एक दिन सदाशिव जीजा जी दीदी
को लेने आए तो माला दीदी ने कहा कि पहले वह अपनी माँ को समझाएँ, तभी वे सुजाता दीदी को भेजेंगे। कुछ
दिन बाद सदाशिव जीजा जी खुद ही वहाँ आकर रहने लग पड़े। उनका प्रिंटिंग पै्रस तो
लगभग बंद ही था। बड़े जीजा जी बहुत दुखी थे और हैरान भी। सुजाता दीदी से तो उनको
बड़े सुख थे। वह बबली की देखभाल करती। खाना बनाती। बबली के लिए जो आया रखी हुई थी,
उसकी छुट्टी कर
दी। पर सदाशिव को सारा दिन घर में खाली बिठाकर कितने दिन कोई खाना खिला सकता था।
बड़े जीजा जी उसकी नौकरी के लिए कोशिश करने लग पड़े। वह दो-चार दिन काम करते,
फिर छोड़ देते।
काम पसंद न आता। घर में तनाव बढ़ गया। दोनों जीजों में एक दिन खूब कहा-सुनी हो गई।
बस, सदाशिव
जीजा जी एक दिन घर से बाहर गए तो फिर वापस ही नहीं आए।
सुजाता ने स्वयं ही एक बार बताया था कि उसने
दिल्ली में श्रीराम कालेज से बी.ए. की थी। वह बी.एड. कर रही थी तो मम्मी की बीमारी
के कारण उसको पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी क्योंकि माला तब आॅल इंडिया मेडिकल
इंस्टीच्यूट से एम.बी.बी.एस. करके रेजीडेंसी कर रही थी। वह तो पढ़ाई में बहुत
व्यस्त थी। सुजाता ने मम्मी की बहुत सेवा की थी। दिन रात एक कर दिया।
स्वाति कहा करती थी - भाभी जी, सुजाता दीदी तो सेवा करने के लिए ही
पैदा हुई है। पहले मम्मी की, फिर बबली की। बबली को बड़ा करने में उसका बहुत
बड़ा हाथ है। जब बड़ी हो कर बबली सुजाता दीदी के साथ बुरा व्यवहार करने लग पड़ी तो
दीदी का इस घर में से मन उचाट हो गया। बबली बात-बात पर ताने देती, कड़वी-कषैली बातें करके दीदी का दिल
तोड़ती रहती। पर दीदी जाए तो कहाँ जाए। कोई है भी तो नहीं। जब सदाशिव जीजा जी घर
छोड़कर चले गए तो दीदी बहुत रोई थी। माला दीदी और बड़े जीजा जी को रो-रोकर कहती कि
वे सदाशिव को खोजें। बड़े जीजा जी स्वयं को दोषी समझते थे कि उनके बुरा-भला कहने पर
ही वह घर छोड़कर गए हैं। उनको खोजने की कोशिश भी बहुत की। आखि़र, चुप हो गए। दीदी अंदर ही अंदर
चुपके-चुपके रोती रहती। वह पुरानी फीके रंगों वाले कपड़े पहने रहती। बालों में फूल
लगाने छोड़ दिए। बस, माला
दीदी का पूरा घर संभाले रखती। कभी कोई शिकायत नहीं। कोई मांग नहीं। सब शोक मार
दिए। बड़े जीजा जी के पास पहले स्कूटर होता था। इस बहाने वह सुजाता दीदी को कभी कहीं घुमाने भी ले जाते। कभी माला दीदी को
लेकर चले जाते। सुजाता दीदी बस घर की चारदीवारी में ही बंद होकर रह गई।
“बाबा ने कभी सुजाता दीदी की खब़र नहीं ली।
उन्हें अपने आपसे और कृष्णा से ही फुरसत नहीं थी। जब मैं दीदी के पास आकर रहने लग
पड़ी तो सुजाता दीदी मुझसे कहती - स्वाति, मेरा भी कुछ सोचो। दीदी तो कुछ सुनने को तैयार
ही नहीं। उन्होंने मेरी ओर से आँखें मूंद ली हैं।।“
“मैं दिल में सोचती - माला दीदी को जो आराम मिल
रहा है, उसका
क्या होगा। भाभी जी, मेरे
बारे में भी इस घर में कौन सोचता है ? कौन सोचे। मम्मी छोड़कर स्वर्ग जा सिधारी। बाबा
ने अपनी नई दुनिया बसा ली। अपनी बेटियों की कभी सुध नहीं ली।“
स्वाति ने ही बताया था कि सुजाता फिर से विवाह
करना चाहती है। वह सोचती है कि माला दीदी के घर में अब उन्हें उसकी ज़रूरत नहीं।
तभी स्वाति ने उसके तलाक के लिए कार्रवाई शुरू कर दी थी और अख़बार में विवाह के
लिए विज्ञापन दे दिया था। परंतु अभी तक कहीं बात नहीं बन पाई थी। वह कहती थी,
उसको किसी बूढ़े
के साथ विवाह नहीं करवाना।
“भाभी जी, दीदी अब पचास साल की हो गई है। हालांकि
लगती छोटी है, पर
जवान लड़का कहाँ से मिले।“ स्वाति बताते हुए कभी हँसती, कभी गंभीर हो जाती।
“स्वाति, तेरी दीदी को एक साथ का अभाव तो महसूस
होता ही होगा। अगर कोई ठीक-सा मैच मिल जाए तो क्या बुरा है। अमेरिका में जहाँ मेरा
छोटा बेटा रहता है, उसके
साथ एक लड़का काम करता है, अमेरिकन है। उसका नाम है - माइक। उसकी माँ ने
चैथी बार शादी की है। वह जवान नहीं। दोहतो-पोतों वाली है।“
“अमेरिका की बात और है भाभी जी, पर चैथी शादी ? हैरानी की बात है।“ स्वाति मुस्कराकर बोली।
“हैरानी मुझे भी हुई थी। पर उसके हालात ही कुद
ऐसे बन गए। पहली शादी में से दो बेटियाँ हुईं तो तलाक हो गया। दूसरी में से दो
बेटे जुड़वा हुए। माइक उनमें से ही एक है। वह पति एक कार हादसे में मारा गया। फिर
तीसरी शादी की। वह बहुत देर चली, पर उस आदमी को कैंसर हो गया और वह भी मर गया।
तब तक सब बच्चे ब्याहे गए थे, अपने अपने घरों में अपने अपने बच्चों के साथ।
यह औरत फिर अकेली रह गई। चैथी शादी पता है किसके साथ की ?“
“किसके साथ ?“
“सबसे पहले पति के साथ।“
“अरे !“ स्वाति हँसने लग पड़ी थी।
“पहले वाले के साथ क्यों ?“
“वो भी शायद उस वक़्त खाली होगा। उसकी दूसरी
बीवी या तीसरी न रही हो या तलाक हो चुका हो। यह सब तो पता नहीं। पर अमेरिका में
तलाक बहुत होते हैं। दरअसल, पहली शादी लड़के-लड़कियाँ पढ़ते हुए छोटी आयु में
ही कर लेते हैं। फिर आपस में बनती नहीं। हमारे हिंदुस्तान में तो समस्या है,
माँ-बाप छोटी
उम्र में लड़कियों की शादी कर देते हैं। अभी भी हिंदुस्तान के कई हिस्सों में यह सब
हो रहा है और वहाँ अमेरिका में छूट बहुत है। लड़कियों के बच्चा ठहर जाता है। जल्दी
ही विवाह कर लेते हैं और फिर जिम्मेदारियाँ संभाली नहीं जाती और परिणाम तलाक...।“
बिस्तर पर लेटे लेट स्वाति और सुजाता की बातें
सोचते सोचते मेरा ध्यान अमेरिका में मिले तलाकशुदा लोगों की ओर चला गया और पता
नहीं कब मैं सो गई।
(जारी…)