Tuesday 5 June 2012

उपन्यास











मित्रो, इस बार उपन्यास के अगले चैप्टर की पोस्टिंग में कुछ विलम्ब हुआ है, क्षमा प्रार्थी हूँ। स्वास्थ खराब होने और अस्पताल में भर्ती होने के कारण अभी शरीर में वो शक्ति और ऊर्जा नहीं है, फिर भी परतें उपन्यास की अगली किस्त यानी चैप्टर -6 आप सब के समक्ष प्रस्तुत कर रही हूँ… आशा है, आप पूर्ववत अपना स्नेह-प्यार बनाए रखेंगे।
-राजिन्दर कौर

परतें
राजिन्दर कौर
6

धीरे-धीरे घर में बुजुर्ग़ों की पदवी रघुबीर के भापा जी सरदार मनजीत सिंह तथा बीजी प्रेम कौर को मिल गई। उन दोनों की बुद्धिमत्ता, लगन, मेहनत और प्रेम-भावना का घर में पहले से ही बड़ा दबदबा था। मनजीत सिंह के छोटे भाई तथा मामियाँ सब उन पर बड़ा गर्व करते थे। मनजीत सिंह अभी होटल की जिम्मेदारियाँ बखूबी निभा रहे थे।
      अब 'सहज पाठ' की जिम्मेदारी, गुरू ग्रंथ साहिब का सुबह 'प्रकाश करना', संध्या के समय 'रहिरास' का पाठ तथा 'सुखासन', इन सबकी जिम्मेदारी मनजीत सिंह तथा प्रेम कौर पर आ गई थी।
      इस परिवार के होटल के काम का विस्तार हो रहा था। जस्सी का भाई तथा रघुबीर होटल ट्रेनिंग के लिए इंग्लैंड चले गए।
      रघुबीर वहाँ संदीप को बहुत मिस करता। अक्सर ही घर में फोन करके सबका हाल पूछता रहता।
      तभी, 1965 की जंग शुरू हो गई। हिन्दुस्तान और पाकिस्तान में कश्मीर को लेकर वाद-विवाद चलता ही रहता था। हिन्दुस्तान पर आक्रमण करने से पूर्व बहुत सारे पाकिस्तानी भेस बदलकर कश्मीर में चोरी-छिपे प्रवेश कर गए थे। वे कश्मीर के लोगों को भारत के विरुद्ध भड़काने के लिए आए थे। पाकिस्तानी फौजें भी पीछे-पीछे आ धमकीं। उन्होंने टैंकों तथा जेट लड़ाकू हवाई-जहाजों से भारत पर हल्ला बोल दिया। पाकिस्तान को ये जंगी जहाज अमेरिका ने दिए थे। चीन भी उसे हथियार भेज रहा था और पाकिस्तानी फौजों को ट्रेनिंग भी दे रहा था।
      भारत का पूरा ध्यान अब युद्ध के मैदान की ओर लगा था। हवाई-हमलों का भय हर समय लगा रहता था। युद्ध के कारण लोगों का आना-जाना कम हो जाता और होटल व्यवसाय पर भी इसका प्रभाव अवश्य पड़ता।
      मनजीत सिंह के परिवार पर भी इस युद्ध का काफ़ी बुरा असर हुआ था। रघुबीर भी इंग्लैंड में बैठा घर-परिवार की बहुत चिन्ता करता। इधर जस्सी संदीप को लेकर बहुत चिंतित हो उठी थी।
      ''भापा जी, हिन्दुस्तानी फौजों को चाहिए कि पाकिस्तान को ऐसा सबक सिखाएँ कि वह फिर कभी कश्मीर की ओर मुँह न करे।'' जस्सी जोश तथा गुस्से में कहती।
      ''पाकिस्तान को अमेरिका और चीन की शह मिल रही है। यदि वे उसे हथियार न दें तो पाकिस्तान कुछ नहीं कर सकता।'' मनजीत सिंह कहते।
      ''कश्मीर समस्या का कुछ न कुछ हल ज़रूर निकलना चाहिए। लड़ाई जल्द खत्म हो तो तनाव से मुक्ति मिले।'' जस्सी समाचार पत्र तथा रेडियो से साथ चिपकी रहती और प्रत्येक ख़बर पर नज़र रखती।
      जब रघुबीर और जस्सी का भाई दोनों भारत लौटे तो देश में बहुत कुछ घट चुका था। पाकिस्तान से ताशकन्द समझौता, लाल बहादुर शास्त्री जी की आकस्मिक मृत्यु और इन्दिरा गांधी का प्रधान मंत्री की कुर्सी पर बैठना।
      इंग्लैंड से लौट कर रघुबीर, संदीप, जस्सी, भापा जी और बीजी को संग लेकर अमृतसर गया। रघुबीर के बीजी ने मन्नत मानी थी कि वह रघुबीर के बेटे को अमृतसर दरबार साहिब के दर्शनों के लिए अवश्य ले जाएँगे। लेकिन जाने का अवसर ही न मिला। दरबार साहिब के दर्शन तथा स्नान के पश्चात् वे सब लुधियाना आ गए। वहाँ रघुबीर की बुआ सत्ती रहती थी। उन्हें देखकर वह फूली न समाई। इस परिवार की पंजाब की फेरी बहुत लम्बी अवधि के बाद लगी थी। पंजाब के अन्य शहरों में वे अपने दूर-पास के सभी सगे-संबंधियों से मिलते हुए बम्बई वापस पहुँचे।
      अब इस परिवार ने गोवा में एक होटल खोलने का इरादा कर लिया था।
      हिन्दुस्तान 1947 में अंग्रेजों की गुलामी की बेड़ियों से मुक्त हो गया था लेकिन गोवा अभी भी पुर्तगाल के अधीन था। सन् 1498 में एक पुर्तगाली वास्कोडिगामा ने भारत के पश्चिमी तट पर कालीकट में आकर पड़ाव डाला था। उसी ने यूरोप से भारत का समुद्री मार्ग खोज निकाला था। उस समय भारत के गर्म मसालों के व्यापार पर अरब देशों ने कब्ज़ा जमा लिया था। अब पुर्तगाल ने धीरे-धीरे गोवा बन्दरगाह पर अपना अधिकार जमा लिया। सन् 1510 तक उन्होंने गोवा में अपना राज्य कायम कर लिया। उन्होंने बहुत से लोगों को ईसाई धर्म अपनाने के लिए मज़बूर कर दिया था। कुछ लोग हिन्दू समाज में जाति-भेद के कारण दु:खी थी, इसलिए वे अपनी इच्छा से ईसाई बन गए। हिन्दू मंदिरों को तोड़कर चर्च स्थापित किए गए। जिसकी लाठी, उसकी भैंस।
      पुर्तगाली तथा भारतीयों में अंतर्जातीय विवाहों से जो संतान हुई, उसने गोवा के धार्मिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक जीवन में अपना विलक्षण योगदान दिया।
      जब गोवा में भी आज़ादी की लहर जोर पकड़ने लगी तो वहाँ की सरकार ने इस लहर को कुचलने की पूरी कोशिश की। सरकार के दमन-चक्र में आन्दोलन और अधिक तीव्र हो उठा।
      सन् 1961 में भारत सरकार ने गोवा की सरकार के विरुद्ध सैनिक कार्रवाई करके उसे पुर्तगाली गुलामी से स्वतंत्र करवा दिया। पूरे 450 वर्ष पश्चात् गोवा ने आज़ादी की साँस ली।
      उसके पश्चात् गोवा विकास के मार्ग पर चल पड़ा। वहाँ पर्यटकों की संख्या बढ़ रही थी। गोवा का समुद्री किनारा, वहाँ की हरियाली तथा अन्य प्राकृतिक दृश्य, भारतीय और विदेशी यात्रियों को अपनी ओर खींचते थे। ऐसे अवसर पर वहाँ होटल उद्योग में बहुत वृद्धि हो रही थी।
      अब रघुबीर बहुत व्यस्त हो गया था। उसका एक पैर गोवा में होता तो दूसरा मुम्बई में। समय बीतता गया। जस्सी भी कई बार रघुबीर के साथ चली जाती।
      परिवार की सभी स्त्रियाँ जस्सी को दूसरा बच्चा पैदा करने की सलाह देतीं।
      ''क्या तुम सास की तरह एक पर ही विराम लगा रही हो ? कम से कम दो बच्चे तो होने ही चाहिएँ।''
      जस्सी हँसकर बात को टाल देती।
      तभी देश पर पुन: संकट के बादल मंडराने लगे। पूर्वी पाकिस्तान में पश्चिमी पाकिस्तान के विरुद्ध आन्दोलन प्रारंभ हो गया। पूर्वी पाकिस्तान की मांग थी कि उसे स्वयं शासन करने का अधिकार दिया जाए परन्तु पश्चिमी पाकिस्तान उनकी मांगों को कुचल रहा था। सैनिक दमन ज़ोरों पर था। पश्चिमी पाकिस्तानी सैनिकों ने पूर्वी पाकिस्तान के हज़ारों आन्दोलनकारियों को मौत के घाट उतार दिया। लाखों लोग पश्चिमी बंगाल में शरण लेने को विवश हो गए। इन शरणार्थियों को भारत में शरण देने के लिए देश पर बहुत बड़ी आर्थिक जिम्मेदारी आ पड़ी थी। उस समय भारत की प्रधान मंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी थीं। भारत के सामने बहुत बड़ा संकट उठ खड़ा हुआ था। भारत ने पूर्वी पाकिस्तान की आज़ादी के पक्ष में निर्णय लिया और पूर्वी पाकिस्तान में स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए बनी 'मुक्ति वाहिनी' का साथ देना शुरू कर दिया। इस बात से चिढ़ कर पाकिस्तान ने हिन्दुस्तान के पश्चिमी हिस्सों पर हवाई आक्रमण आरंभ कर दिए। भारतीय सेना भी पूरी तरह तैयार थी। जल, थल और वायु - तीनों सेनाओं ने पाकिस्तानी सैनिकों को पूर्वी पाकिस्तान से बाहर खदेड़ दिया। पाकिस्तानी सेना ने भारतीय सेना और 'मुक्ति वाहिनी' के सामने हथियार डाल दिए। सन् 1971 में पूर्वी पाकिस्तान पश्चिमी पाकिस्तान की गुलामी से स्वतंत्र हो गया और नया देश 'बांग्ला देश' के नाम से जाना जाने लगा।
      इस युद्ध में भारत की विजय तो हुई थी लेकिन जान-माल की बहुत भारी क्षति भी हुई। देश की आर्थिक स्थिति पर इस युद्ध का बड़ा भारी प्रभाव पड़ा था। दूसरा श्रीमती इन्दिरा गांधी की ताकत बहुत बढ़ गई थी।
      जस्सी इन्दिरा गांधी की बड़ी भक्त थी। वह अक्सर ही इन्दिरा गांधी को पत्र लिखती रहती। सन् 1971 की जीत के पश्चात् वह उसकी बहुत बड़ी प्रशंसक बन गई थी। वह अपनी सहेलियों तथा घर के सदस्यों के सामने उसके गुण गाती रहती।
      घर में टी.वी. पर वह नियम से रात के समाचार अवश्य सुना करती।
      ''तुम्हें राजनीति में बहुत रुचि है। अगले चुनाव में तुम भी चुनाव लड़ने के लिए तैयार हो जाओ।'' एक दिन रघुबीर ने मज़ाक में कहा।
      ''आप मेरा मज़ाक उड़ा रहे हें या सचमुच ही आप चाहते हैं कि मैं ...।''
      ''मेरी कहाँ हिम्मत कि मैं तुम्हारा मज़ाक उड़ाऊँ...।'' रघुबीर हँसते हुए बोला।
      एक रात अचानक लोगों पर जैसे बम्ब गिरा हो। पूरे देश में आपात काल की घोषणा कर दी गई। सारा देश सन्नाटे में आ गया।
      यद्यपि 1975 में देश में बहुत-सी राजनीतिक और आर्थिक समस्याएँ थीं। सन् 1971 की जंग की जीत के बाद इन्दिरा गांधी के हाथ में जो शक्ति आ गई थी, वह उसके सिर पर चढ़ गई थी। आपातकाल की घोषणा करके तो वह तानाशाह ही बन बैठी। नागरिकों के अधिकार स्थगित कर दिए गए। कई विरोधी नेताओं को जेलों में डाल दिया गया। इस के अतिरिक्त उसने अपने छोटे बेटे संजय गांधी के हाथ में बहुत-सी शक्ति दे दी। वह सरकार के सभी कार्यों में हस्तक्षेप करने लगा। वह प्रत्येक अधिकारी को अपना आदेश सुनाने लगा।
      रघुबीर, उसके चाचा, उसके भापाजी घर में इन्दिरा गांधी और संजय गांधी के विरुद्ध बोलते तो जस्सी इन्दिरा गांधी के पक्ष में खड़ी हो जाती। वह आपातकाल के पक्ष में तर्क देती।
      ''भारत में लोकतंत्र नहीं चल सकता। कठोर कानून बनेंगे, तभी लोग सुधरेंगे।'' जस्सी ने इन्दिरा गांधी को प्रशंसा भरे पत्र लिखे।
      परिवार के लोग उसके साथ बहस करके अपना दिमाग खराब न करते। लेकिन रघुबीर के साथ उसकी तनातनी इसी बात को लेकर हो जाती। संजय गांधी ने परिवार नियोजन के लिए जो तरीके अपनाये, उन तरीकों से लोग उसके विरुद्ध हो गए।
      इन्दिरा गांधी सत्ता के नशे में मगरूर हो गई थी। सन् 1977 में उसने आम चुनावों की घोषणा कर दी। उसे यकीन था कि वह भारी बहुमत से जीत जाएगी। परन्तु लोग उसकी तानाशाही से इतने दु:खी हो चुके थे कि उसकी इन चुनावों में जबरदस्त हार हुई। अब पाँच विरोधी दलों ने मिलकर जनता दल के मोरारजी देसाई को देश का प्रधान मंत्री बना दिया।
      जस्सी का उत्साह कुछ कम हो गया था लेकिन उसका विश्वास अभी भी इन्दिरा गांधी पर वैसा ही रहा।
(जारी…)

3 comments:

  1. aapne apne is upanyaas ansh me bahut achchhe tarike se uss samay ke itihaas ko bhee prosaa hai jo kabile tareeph hai,badhai.

    ReplyDelete
  2. आप पहले अपने स्वास्थ्य का खयाल रखें। ईश्वर से प्रार्थना है कि वह आपको जल्द स्वस्थ और सेहतमंद करे। आपके इस उपन्यास के इस चैप्टर को पढ़कर पुराना समय स्मरण हो आया…

    ReplyDelete
  3. आपके मेल तो मुझे पहले भी मिलते थे. पर में समय न होने की वजह से कभी इस उपन्यास को पढ़ न सका था. आज कुछ फुर्सत में था तो आपके ब्लॉग पर गया और इस उपन्यास के प्रथम किस्त से छठी किस्त तक पढ़ा गया. मजा आया. बहुत बेहतरीन तरीके से वक्त के साथ सात इतिहास को साथ लेकर बहुत गहरी कहानी बुनी है आपने. रोचकता और शैली के आनंद के साथ साथ आपकी रचना जीवन के भी कई मुकाम के दर्शन करा रही है.. अब इसकी अगली किश्त का बेसब्री से इन्तजार रहेगा..
    आपके स्वस्थ्य की खबर भी दुखी करने वाली है. अतः आप अपने स्वस्थ्य का ध्यान रखें ...
    मेरी शुभकामनाएँ और उत्तम रचना के लिए बादही स्वीकार कीजिये

    योगेश समदर्शी
    yogesh.samdarshi@gmail.com

    ReplyDelete