Sunday, 30 September 2012

उपन्यास




मित्रो, परतें उपन्यास की चौहदवीं किस्त आपके समक्ष है। इस उपन्यास को आपका प्यार मिल रहा है। आप इसे उत्सुकता से पढ़ रहे हैं और इस पर अपनी राय भी निरंतर दे रहे हैं। यह मेरे लिए खुशी और तसल्ली की बात है। लेखक को गहरी खुशी तब होती है, जब पाठक उसकी रचना से जुड़ते हैं, उसे पसंद करते हैं और अपनी बात लेखक तक पहुंचाते हैं। ऐसे में पाठकों का यह प्यार, उनकी यह राय आलोचकों से अधिक महत्वपूर्ण होती है।
हमेशा की भाँति इस चैप्टर पर भी आपकी राय की प्रतीक्षा रहेगी।
-राजिन्दर कौर


परतें
राजिन्दर कौर



14

देश और कौम की इस संकट की घड़ी में जस्सी अपना सारा दुख भूल-सी गई थी। परिवार में आजकल इन्हीं विषयों पर बात होती, जैसे पंजाब में अतिवाद कहाँ से शुरू हुआ, क्यों शुरू हुआ, उसके जिम्मेदार कौन हैं ? इसमें पाकिस्तान की क्या भूमिका रही है ? आदि।
      विशेष संकट तो सिक्खों के लिए था। यू.पी. और मध्य प्रदेश के बहुत से शहरों से सिक्ख पंजाब की ओर जाकर वहाँ बसने की योजनाएँ बना रहे थे। बहुत सारे सिक्खों ने अपनी ज़मीन-जायदाद ओने-पोने दाम में बेच दी और अमृतसर, जालंधर आदि शहरों में नये सिरे से बसने के लिए परिवार सहित कूच करने लगे।
      कई सिक्खों ने केश कटवा दिए। पंजाब से बाहर सिक्ख बहुत ही असुरक्षित महसूस कर रहे थे।
      ''हम अपने ही देश में सुरक्षित नहीं।'' जसपाल ने ठंडी आह भरकर कहा, ''हमें धीरे धीरे यहाँ से बाहर चले जाना चाहिए।''
      ''क्यों ? फिर से शरणार्थी बन जाएं!''
      ''बस-बसाये घर छोड़कर परदेश में जा बसें ! वहाँ हमारा कौन है ?'' प्रेम परेशान होकर बोली।
      ''ये हालात वक्ती हैं। सब ठीक हो जाएगा। हिंदू-सिक्ख हमेशा इकट्ठे रहते आए हैं। यह फूट डालने वाले नेता ही हैं...।'' मनजीत सिंह बोले।
      ''फिर भी बाहर जाने के लिए कोशिश तो करनी ही चाहिए। जो भी जा सके...।''
      ''फिर तो सारा परिवार बिखर जाएगा।'' प्रेम ने कहा। उनका चेहरा बता रहा था कि वह बहुत तनाव में थीं। प्रेम जब भी तनाव में होंती, उनके आधे सिर में दर्द शुरू हो जाता।
      इन हालातों में संदीप के विवाह की बात पिछड़ती चली गई। लेकिन मन ही मन जस्सी समझ गई थी कि अब उसे 'हाँ' करनी ही पड़ेगी।
      पंजाब में तो अतिवाद अभी भी ज़ोरों पर था, पर ज़िंदगी फिर अपने ढर्रे पर चल पड़ी थी।
      जसबीर ने इस विवाह के लिए 'हाँ' करने के लिए सोच ही लिया।
      इकलौते पुत्र के विवाह पर जस्सी के चेहरे पर जो खुशी दिखाई देनी चाहिए थी, वह दिखाई नहीं देती थी। घर के सभी सदस्य इस बात को अनुभव कर रहे थे।
      विवाह से पहले की सभी रस्में हुईं - शगुन, चुन्नी चढ़ाने की रस्म, मेंहदी की रात, काकटेल और विवाह के बाद रिसैप्शन। होटल में आधी आधी रात तक डांस, शराब के दौर। हर फंक्शन में ज्योति के परिवार को निमंत्रण दिया गया। ज्योति की साड़ियाँ और गहने बेहद सादे होते। वर वाले घर की सभी स्त्रियों के गहने, सूट, साड़ियाँ, बालों के स्टाइल और मेकअप में होड़ लगी होती। जो गहना या ड्रैस एक फंक्शन में पहना होता, वह दूसरे फंक्शन में नहीं चल सकता था।
      जस्सी भी अपने परिवार के हर सदस्य की तरह इस होड़ में शामिल हो सकती थी, पर ज्योति की सादगी देखकर उसके सम्मुख अधिक भड़कीली बनकर जाना वह नहीं चाहती थी। वह देखती कि ज्योति के कानों में छोटे छोटे बुंदे या टाप्स होते। कभी गले में पतली-सी चेन और साड़ी से मेल खाता छोटा-सा पेंडेंट। कभी मोतियों की माला। हर बार बालों की एक ही स्टाइल, लंबी चुटिया !
      रश्मि अवश्य अलग अलग ड्रैसों में फंक्शन पर आती। कभी बाल खुले, कभी चुटिया, कभी क्लिप में लिपटे हुए बाल, कभी सूट, कभी चूड़ीदार, कभी लहंगा। सभी की जुबान पर रश्मि की सुंदरता का जिक्र होता।
      काकटेल पार्टी में घर के सभी सदस्य कभी ढोल की थाप पर, कभी किसी फिल्मी संगीत की लय पर नाच रहे थे। सबने बारी बारी से जस्सी, रघुबीर, ज्योति, रश्मि और रश्मि के पिता जसदेव को भी डांस करने के लिए बांह पकड़कर खींच लिया। न-नुकुर के बाद सभी हाथ-पैर हिलाने लग पड़े। पर, रश्मि और संदीप के पैरों की थाप संगीत के साथ साथ कुछ अधिक ही एकमेक हो गई थी। आहिस्ता-आहिस्ता सब पीछे हट गए और लड़का लड़की मस्ती से नाचते रहे। खूब तालियाँ बजीं। बहुत सारे रुपये न्योछावर किए गए, इस जोड़ी पर। सब इस जोड़ी को देखकर बहुत खुश लग रहे थे।
      इन सभी फंक्शन के दौरान जस्सी और ज्योति की आपसी वार्तालाप '' के बराबर थी। बस मुस्कराहटों का आदान-प्रदान होता रहता। 'मिलनी' के समय जब दोनों समधिनें गले मिलीं तो जस्सी रस्मी तौर पर आगे बढ़कर मिली, परन्तु ज्योति ने जस्सी को कसकर बांहों में भर लिया। आसपास खड़े सब रिश्तेदारों ने खूब तालियाँ बजाईं।
      आर्थिक रूप से ज्योति का परिवार जस्सी के परिवार के बराबर का नहीं था, पर फिर भी ज्योति के घर वालों ने बढ़-चढ़कर सब किया।
      कुछ लोगों ने कानाफूसी भी की।
      ''रघुबीर और ज्योति का वैसे मेल नहीं हुआ तो ऐसे सही।''
      ''कुदरत ने उन दोनों को फिर से मिला ही दिया।''
      ''बाप बेटे की पसंद बहुत मिलती है।''
      ''जो भी कहो, रश्मि बड़ी प्यारी बच्ची है।''
      ''जस्सी बहुत खुश नहीं लगती।''
      ''धीरे धीरे अपने आप ठीक हो जाएगी।''
      डोली आई तो जस्सी ने सब रस्में कीं, पर चेहरे पर वह खुशी का भाव और रौनक दिखाई नहीं दिए जो ऐसे अवसर पर होती है।
      तीसरे दिन संदीप और रश्मि हनीमून के लिए चले गए। धीरे धीरे पंजाब से, दिल्ली से आए रिश्तेदार भी अपने अपने घरों को वापस लौट गए। संदीप का लगभग रोज़ ही फोन आ जाता। जस्सी इन दिनों घर को समटेने, व्यवस्थित करने करवाने में व्यस्त थी।
      एक दिन जस्सी की आँख कुछ विलम्ब से खुली। रघुबीर किसी गाने की धुन और गीत के बोल गुनगुना रहा था। जस्सी ने रघुबीर को इतना खुश तो बहुत कम ही देखा था। कुछेक पल वह चुपचाप लेटी रही और रघुबीर को गाते हुए सुनती रही, फिर अकस्मात् बोली -
      ''आज बड़ा चहक रहे हो ? तुम्हारे मन की मुराद पूरी हो गई है।''
      रघुबीर ने चौंककर पीछे मुड़कर देखा।
      ''तू क्या कहना चाहती है ?'' उसके माथे पर छोटी-सी त्यौरी उभर आई थी।
      ''तुम सब जानते हो कि मैं क्या कहना चाहती हूँ। अनजान बनने की कोशिश न करो।'' बिस्तर से उठती हुई वह बोली।
      ''तेरी तू ही जाने। हर वक्त ज़ली-कटी ही सुनाती रहेगी। कभी खुश भी रहेगी ? हमारा बेटा खुश है तो हमें भी खुश होना चाहिए।''
      ''अगर वह मेरी पसंद की लड़की से विवाह करवाता तो मैं आज फूली न समाती। पर उसने तो मेरी उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। वह भी तुम्हारे साथ मिल गया है।'' गुस्से में बड़बड़ाती वह बाथरूम में चली गई। जब वह बाहर निकली तो पता चला कि रघुबीर चाय-नाश्ता किए बग़ैर ही घर से बाहर चला गया था।
(जारी…)

3 comments:

  1. रोचकता बनी हुयी है।

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  2. upanyaas kii katha apne aakarshan ke saath bandhe rakhti hai.sundar.

    ashok andre

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  3. bahut achha chal raha hai upanyas. agli kishta ki pratiksha rahti hai. purna hone par ise prakashit karna chahenge ham
    bhupal sood
    ayan prakashan
    ph. 9818988613

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